Poem:- Lucknow- City of Nawab
गलियों में सजा लखनऊ
लज्जत से रचा लखनऊ
कुल्फी पे पिघल जाइये
फालूदे में उलझकर फिर
अनरसे से जा टकराइये
कबाबों की जान इसमें
काकोरी गलावटी किस्में
निहारी की बङी रस्में
बिरयानी पे खायें कसमें
कैरी की खीर से रंगत
बर्फ के गोलों की ठंडक
टिक्की बताशों की संगत
दिल की पूरी हुयी मन्नत
आलू पे हरी धनिया
शिकंजी पे झूमी दुनिया
गिलौरी के मीठे बोसे
सब की ज़बान रोके
आयें जनाब लखनऊ
जायकों के नाम लखनऊ
गलियों में सजा लखनऊ
लज्जत से रचा लखनऊ
नाज है कि
हमारा शहर है लखनऊ
लज्जत से रचा लखनऊ
मक्खन की सुबह लखनऊ
रबङी की शाम लखनऊ
आयें जनाब लखनऊ
जायकों के नाम लखनऊ
फि्रनी पे मचल जाइयेकुल्फी पे पिघल जाइये
फालूदे में उलझकर फिर
अनरसे से जा टकराइये
कबाबों की जान इसमें
काकोरी गलावटी किस्में
निहारी की बङी रस्में
बिरयानी पे खायें कसमें
कैरी की खीर से रंगत
बर्फ के गोलों की ठंडक
टिक्की बताशों की संगत
दिल की पूरी हुयी मन्नत
आलू पे हरी धनिया
शिकंजी पे झूमी दुनिया
गिलौरी के मीठे बोसे
सब की ज़बान रोके
आयें जनाब लखनऊ
जायकों के नाम लखनऊ
गलियों में सजा लखनऊ
लज्जत से रचा लखनऊ
नाज है कि
हमारा शहर है लखनऊ
Comments